लोग जागेंगे तो शहर आबाद रहेगाः शहर में 66 फीसदी जल भूजल संसाधन से आता है, जितना जमीन में जा रहा उससे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा पानी
हाल ही में इंदौर के गिरते भूजल स्तर और बढ़ते प्रदूषण सहित अन्य समस्याओं को लेकर हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई है। इसमें कहा है कि शहर में भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। प्रदूषण की स्थिति भी लगातार बिगड़ रही है। याचिका में मुख्यतः पांच बिंदु उठाए गए हैं। इसमें कहा है कि भारत सरकार द्वारा जारी चेतावनी के मुताबिक इंदौर शहर में 2022 में भूजल खत्म होने की आशंका है। इसी तरह केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के आंकड़ों के हिसाब से इंदौर और दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति बराबर है। इंदौर में यातायात बदतर हो रहा है। जिस तरह से विकास के नाम पर तोड़फोड़ की जा रही है उससे लग रहा है कि आधा शहर तोड़ना पड़ेगा। सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के सही आकलन नहीं करने की वजह से शहर के विकास के नाम पर बनाई गई ज्यादातर योजनाएं फेल हो रही हैं। याचिका में प्रभारी मंत्री और मुख्य सचिव को भी पक्षकार बनाया गया है।
डार्क जोन घोषित हो चुका है इंदौर
जब सरकार भूजल संरक्षित करने के लिए प्रचार प्रसार कर रही थी, उस समय भी इंदौर में भूजल दोहन का काम धड़ल्ले से होता रहा। प्रशासनिक अधिकारियों ने दस महीने में 500 से अधिक स्थानों पर ट्यूबवेल खोदने की अनुमतियां तो आधिकारिक तौर पर जारी कर दीं। अनधिकृत ट्यूबवेल सतत खोदे जा रहे हैं, यह तथ्य तो किसी से छिपा नहीं है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि भूमिगत जल स्तर के मामले में इंदौर को डार्क जोन घोषित किया गया है। डार्क जोन का अर्थ है कि जमीन में जितना पानी हर साल जा रहा है, उससे ज्यादा मात्रा में निकाला जा रहा है। इससे पाताल में जल स्तर बेहद बुरी स्थिति में पहुंच चुका है। केंद्र सरकार ने तो इसी वर्ष इंदौर में भूजल के गंभीर स्तर तक पहुंचने की चेतावनी जारी की थी। बावजूद इसके अंधेरगर्दी चलती रही। असल में बड़ा प्रश्न यह है कि नर्मदा परियोजना से तीन चरणों में अथाह पानी की आवक के बाद शहर में ट्यूबवेल खोदने की आवश्यकता ही क्या है? हर इलाके में नर्मदा का पानी पहुंचाने पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं और पाइप लाइन का नेटवर्क भी बिछाया गया है। आखिर ऐसी कौन सी जरूरत आन पड़ी है कि लोग ट्यूबवेल खोदना चाह रहे हैं।
खरीदना पड़ता है
पानी निपानिया की लगभग सभी टाउनशिप व इमारतों में मार्च से जून तक जलसंकट रहता है। रहवासी संघों के मुताबिक, कमोबेश हर इमारत में महीने का 3 से 4 लाख रुपए का पानी टैंकर से खरीदा जाता है। चार महीने के हिसाब से ये 15 से 16 लाख रुपए के बीच पहुंचता है। इन इलाकों में सभी टाउनशिप में ट्यूबवेल हैं। उनकी गहराई भी 600 फीट है, पर गर्मी आते ही सूख जाते हैं। इनका समाधान भी रिचार्जिंग से निकाला जा सकता है। निगम के लिए वाटर हार्वेस्टिंग का काम देख रहे नागरथ ट्रस्ट के सुरेश एमजी ने भास्कर को बताया शहर में भूजल स्तर इतना कम हो गया है कि तीन साल यही हालात रहे तो संभवत- पानी बचेगा ही नहीं।
नगर निगम का प्रस्ताव
नगर निगम ने एक प्रस्ताव तैयार किया है जिसके तहत जी प्लस 2 से ऊपर वालों के लिए वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य होगा। नहीं करने पर पहली बार में 10 हजार रुपए और एक महीने बाद 25 हजार की पेनल्टी लगेगी। सरकारी ट्यूबवेल, गार्डन, मस्जिदों, मंदिरों सहित सार्वजनिक स्थानों पर 10 हजार बोरिंग करवाए जा रहे हैं। लोग भी चाहे तो निगम की एजेंसियों से रियायती दरों में वाटर हार्वेस्टिंग करवा सकते हैं।